लोग सूती अउरी कुकुर भुकि, तब चौबाइन के बीजे होखि

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एक थी चौबाइन
ई. एसडी ओझा 

मेरे घर के पीछे पद्मदेव पाण्डेय का मकान था. पद्मदेव पाण्डेय उस जमाने में गाँव के एक मात्र पढ़े लिखे व्यक्ति थे. वह भी Bsc , MA , L.L.B. मेरी माँ और उनकी पत्नी का आपस में बहनापा था. बहनापा इस बात से कि दोनों का मायका आस पास के गाँवों में था. ये दोनों गाँव एक हीं पिता की दो सन्तानों के नाम पर बसे हुए थे. सन्तानों के नाम थे – कृपाल उपाध्याय और बबुआ उपाध्याय और गाँव के नाम थे – कृपाल पुर व बबुआ पुर. इस नाते पद्म देव पाण्डेय और उनकी पत्नी हमारे मौसा मौसी हुए.

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मेरे घर से एक घर छोड़कर चौबे जी का मकान था. पति-पत्नी रहते थे. कोई सन्तान नहीं थी. दोनों ” हरि इक्षा बलियसि ” मानकर अपना वक़्त गुजार रहे थे. तभी उनके जीवन में भूचाल आया. हुआ यह कि चौबे जी ने पद्मदेव पाण्डेय (हमारे मौसा ) के घर एक लौकी भिजवा दी . चौबाइन का उस घर की औरतों से कुछ दिनों से अबोलापन था. चौबे जी को पता नहीं था. अब क्या था ! चौबाइन ने पूरे घर में कोहराम मचा दी. मेरी लौकी तुमने क्यों दी ? चौबे जी बेचारे हैरान व परेशान ! क्या करें ! जब यह बात हमारे मौसा के घर वालों को पता चली तो उन लोगों ने अपने घर से एक दूसरी लौकी तोड़कर भिजवा दी, क्योंकि उस लौकी की तो सब्जी बन गई थी. चौबाइन अब इस जिद पर अड़ गईं कि उन्हें वही लौकी चाहिए. आज भी यह किस्सा हमारे गाँव में लोकोक्ति के रूप में जन जन में मशहूर है – चौबाइन की लौकी.

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दशहरा का मौसम चल रहा था . कहते है कि इन्हीं दिनों लोग जादू टोना सीखते हैं . पद्मदेव पाण्डेय की बड़ी बेटी हमारे घर आई. उसने मेरी माँ से पूछा – मौसी ! जादू टोना कैसे किया जाता है ? माँ ने मजाक में एक सर्वप्रचलित दोहा कह दिया –

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टोना मोना सुप का कोना,
जहाँ भेंजू वहाँ जाओ टोना.

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वह लड़की बाहर जा इस टोने को जोर जोर से बोलने लगी. सबने सुना. चौबाइन ने भी सुना. वो कहने लगीं – पद्मदेव की बेटी तो टोना सीख गई. अब एक अक्षर और कहेगी तो टोना हो जाएगा. गाँव के गोपाल अहीर सुन रहे थे. उन्होंने कहा – वो एक अक्षर क्या है ? आपको तो पता होगा तभी तो आप कह रहीं हैं ? चौबाइन भड़क उठीं. उन्होंने गोपाल अहीर की सात पीढ़ियों का बुरी बुरी गालियां देते हुए इस बाबत उद्धार किया कि वे उन्हें डायन कह रहे हैं.

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वक़्त का पहिया चलता रहा. चौबेजी दिवंगत हो गए थे. चौबाईन निपट अकेली हों गईं. उन्होंने अपने आप को पूजा पाठ व भगवत भजन में झोंक दिया. वह साफ़ सफाई की बहुत कायल थीं. एक बार उनके गुरुजी आए. उन्होंने सब्जी धोया. फिर काटा. फिर धोया. दाल चावल से एक एक कंकर चुने. धोया और बनाया. इस सारे क्रिया कलाप में एक विचारणीय समय गुजर गया. पूरा गाँव सो गया. तब जा कर चौबाइन ने अपने गुरुजी को खाने के लिए बुलाया. गुरुजी के पेट में चूहे कूद रहे थे. उन्होंने इतनी देर बाद खाना खिलाने पर एक तल्ख टिप्पणी कर दी. बस फिर क्या था ? चौबाइन ने गुरुजी को भी नहीं बख्सा. उनकी खूब लानत मलामत की. पूरा गाँव जग गया. लोगों ने बीच बचाव किया. गुरुजी को किसी तरह खाना खिलाया गया. आज भी हमारे गाँव में यह लोकोक्ति मशहूर है –

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लोग सूती अउरी कुकुर भुकि ;
तब चौबाइन के बीजे होखि .

अर्थात् लोग सो जायेंगें , कुत्ते भौंकना शुरू कर देंगें ;
तब जा के चौबाइन का खाने का बुलावा आएगा .

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चौबाइन मेरे जनम से पहले हीं गुजर गई थीं, पर उनके किस्से आज भी जनश्रुति का रूप ले चुके हैं. शायद अकेला पन और नि:सन्तान होना उन्हें इस मनस स्थिति में ले आया था. (फेसबुक वाल से/ चित्र प्रतीकात्मक)