कौन हैं ’52 गांव के ओझा’ और हल्दी के राजा से उनका क्या है कनेक्शन

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ई. एसडी ओझा
कवन सभा, जंह नारद नाहीं.

उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद के हल्दी क्षेत्र के राजा का साम्राज्य बिहार तक फैला हुआ था. बिहियां की लड़ाई में राजा खेत रहे. रानी अपनी बांदी के साथ गंगा पार कर बलिया के हल्दी राज्य में आ गईं . रानी गर्भवती थीं. चक्रपाणि ओझा ने उन्हें आश्रय दिया. चारो तरफ खबर फैल गई कि राजा का बीज सुरक्षित है. बिहार और उत्तर प्रदेश के राजपूत लामबन्द होने लगे. तभी चैरो बंश के राजा ने हल्दी पर चढ़ाई कर दी. चक्रपाणि ओझा व शूलपाणि ओझा की कूटनीति से चैरो वंश के राजा व उसकी सेना को सोमरस पिला धुत कर दिया. उसके बाद लामबन्द राजपूतों ने भयंकर मार काट मचाई. चैरो बंश का नाश हो गया. नियत समय पर रानी ने एक सुन्दर बच्चे को जन्म दिया. जब तक बच्चा बड़ा नहीं हो गया तब तक उसके संरक्षक के तौर पर शूलपाणि ओझा ने राज काज सम्भाला. जब राजकुमार बड़े हुए तब उनका राज्याभिषेक हुआ. राजकुमार ने खुश हो उस क्षेत्र के पूरे ओझा वंश को 52 गांव दान में दे दिए. ये लोग 52 गांव के ओझा कहलाए .तभी से उस क्षेत्र में एक कहावत प्रचलित हुई, “पहले ओझा, तब राजा ” . 52 गाँव के ओझा कालरात्रि देवी (दुर्गा का एक रूप) की पूजा करते हैं. इनका गोत्र कश्यप होता है.

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ओझा शिखवाल, श्रीमाली ,अत्रि गोत्र ,सारस्वत, भूमिहार (हल चलाने वाले) ,कान्यकुब्ज, मैथिल, नेपाली, संस्थाली और बंगाली ब्राह्मण होते हैं. ओझा उच्च श्रेणी के ब्राह्मण होते हैं. ये दुर्गा की पूजा करते हैं. ये हनुमान, सरस्वती व शिव भक्त भी होते हैं. डा. ईश्वरी प्रसाद ने ऒझा ब्राह्मण के लिए लिखा है, “He who control the spirits. ” मिथिलांचल में इन्हें झा कहा जाता है, जो ओझा का हीं अपभ्रंश है.

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ओझा लोग निरामिष भोजन करते थे. सुरा पान से दूर रहते थे. बिहार में कुछ ओझा सिंह टाइटिल भी लगाते हैं. ये वही हैं जो भूमिहार ब्राह्मण कहलाते हैं . एक खैरी के ओझा भी होते हैं, जो कि लड़ाइयों में भाग लेते थे और भारत के कई प्रान्तों में शासक भी रह चुके हैं. ओझा लोग राजगुरू भी रह चुके हैं. सेनाओं को प्रशिक्षण भी देते थे. थिंक टैंक के बतौर भी इनकी चर्चा हुई है.

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ओझा ब्राह्मण वर्ग नेपाली, भोजपुरी, गुजराती, राजस्थानी, ओड़िया, मैथिली, कुमाऊंनी, बंगाली और संस्थाली भाषाओं का प्रयोग करता है. भारत में ये लोग राजस्थान ,मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के गोंडा, गोरखपुर, पिथौरागढ़, बलिया, प्रताप गढ़ तथा बिहार के बक्सर व आरा जनपद में निवास करते हैं. कुछ ओझा गढ़वाल में भी रहते हैं,जो 52 गांव ओझा का हीं एक शाखा हैं. इन्हें वहां उनियाल कहा जाता है. कुछ ओझा मारीशस में भी पाए जाते हैं. सेन्ट्रल नेपाल में भी इनकी अच्छी खासी तादाद है.

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अब तो ओझा लोग भारत के हर प्रांत और विश्व के हर कोने में पाए जाने वाले प्राणी बन गये हैं-ऐसा कहना रंचमात्र हीं अतिश्योक्ति होगी.तुलसी दास के शब्दों में कहें तो –

कवन सभा, जंह नारद नाहीं.

(फेसबुक कोठार से) 

 

Haldi, Raja of; Narain Deo Thakur Prasad; b. 1859; succeeded, 1860; Head of the Hayoban clan of Rajputs who had established themselves at Ratanpur in the Central Provinces. In recognition of the valuable services rendered by Sarab Narayan Deo, the last ancestor of this family, to the British in the Mutiny of 1857. he was given 2 villages in Ballia, with the title of Raja. Address: Haldi, Ballia, U.P., India.(As per Wikisource)

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