आखिर कब तक शो पीस बने रहेंगे परिषदीय विद्यालय

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रसड़ा (बलिया)। नया सत्र प्रारम्भ होते ही सरस्वस्ती का मंदिर विद्यालय सज धज कर तैयार है. परिषदीय विद्यालयो में शिक्षा के गिरते स्तर से कुकुरमुत्ते की तरह कान्वेन्ट स्कूलों की भरमार सी हो गयी है. इन स्कूलों में प्रवेश को लेकर अभिभावकों की भाग दौड़ मची हुई है. कान्वेंट स्कूल संचालकों द्वारा स्कूलों का चकाचौध बनाकर अभिभावकों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिये तमाम प्रकार के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं, जिससे अभिभावक में भी स्कूल संचालकों के झांसे में आकर अपने बच्चों को इन स्कूलों में प्रवेश दिलाने की होड़ सी मची हुई है.

सरकार के लाख प्रयास के वावजूद अभिभावकों का दोहन इन प्राइवेट विद्यालयों के प्रबंधन द्वारा रुक नहीं रहा है. रसड़ा सहित आसपास के इलाकों में खुले हिन्दी-अंग्रेजी माध्यम प्राइवेट स्कूलों की खूब चांदी कट रही है, जबकि दूसरी तरफ करोड़ों रुपये सरकारी राजस्व के व्यय के बावजूद परिषदीय विद्यालय बच्चों और अभिभावकों को अपनी ओर आकर्षित करने में विफल ही साबित हो रहे हैं. शासन द्वारा परिषदीय विद्यालयों में बच्चों एवं अभिभावकों को आकर्षित करने के लिये छात्रवृति, मध्यान्ह भोजन, ड्रेस, पुस्तक, पुस्तिका आदि सुविधाओं के साथ अच्छे विद्यालयो के साथ साथ शिक्षकों पर करोड़ो-करोड़ों का बजट खर्च किया जाता है.

हर वर्ष परिषदीय विद्यालयो में स्कूल चलो रैली एवं अध्यापको के घर घर प्रचार प्रसार के बावजूद भी छात्रों की संख्या विद्यालयों में घटती ही जा रही है. भले ही विभाग कागज में छात्रों की संख्या अधिक दर्शाता हो, परन्तु धरातल पर वास्तविकता कुछ और ही है. अधिकांश विद्यालयों में तो छात्र से अधिक अध्यापक ही आते हैं. दिन प्रतिदिन परिषदीय विद्यालयों में छात्रों के घटते संख्या के जिम्मेवार शिक्षा का गिरता स्तर है. यही कारण है की आज के परिवेश में गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपने बच्चे की अच्छी शिक्षा तथा भविष्य उज्जवल के लिये प्राइवेट विद्यालय की ओर रुख कर रहा है.

सरकार एवं विभाग अपने गलत नीतियो में बदलाव नहीं किया तो वो दिन दूर नहीं, जब विद्यालय में बच्चे पढ़ने कम खाना खाने खाना के लिये बच्चे ज्यादा जायेंगे. योगी सरकार भी अपनी नीतियों में बदलाव नही किया तथा पिछली सरकार की नीतियो पर ही अमल किया तो वह दिन दूर नहीं जब परिषदीय विद्यालय शो पीस बनकर रह जायेंगे.