बिल्थरारोड विधानसभा क्षेत्र – इतिहास के आइऩे में

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बिल्थरारोड (बलिया) से अभयेश मिश्र

वर्ष 2017 के  विधान सभा का चुनाव में यदि सपा प्रत्याशी बिल्थरारोड से दोबारा चुनाव जीतता है तो वह ऐतिहासिक उपलब्धि होगी. कभी भी इस विधान सभा क्षेत्र से लगातार एक पार्टी से कोई भी प्रत्याशी दोबारा जीतकर विधायक नहीं बना है.

इतिहास पर नजर डाली जाए तो सन् 1962 में रसड़ा विधान सभा का विभाजन हुआ था, जिसके परिणाम स्वरूप सीयर विधान सभा उदय हुआ और कांग्रेस के मान्धाता सिंह ने विधायक के रूप में अपना परचम लहराया. सन् 1967 के चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के शिवलाल यादव विधायक बने. सन् 1969 में निर्दल प्रत्याशी के रूप में बब्बन सिंह ने जीत का सेहरा बांधा. सन् 1974 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के रफीउल्लाह ने जीत हासिल किया और सन् 1977 के चुनाव में रफीउल्लाह ने जनता पार्टी से दुबारा अपना कब्ज़ा बरकरार रखा.

सन् 1980 के चुनाव में बब्बन सिंह ने निर्दल प्रत्याशी के रूप में कड़े संघर्षों के बाद जीत दर्ज कर दूसरी बार विधायक बने. सन् 1985 के विधान सभा चुनाव में शारदानन्द अंचल लोकदल प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल कर विधायक बने. 1989 के विधान सभा चुनाव में शारदानन्द अंचल ने जनतादल के प्रत्याशी के रूप में दूसरी बार अपना परचम लहराया. सन् 1991 में भाजपा के हरिनारायण राजभर विधायक बने. 1993 के विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर शारदानन्द अंचल तीसरी बार विधायक बने.

सन् 1996 के विधान सभा चुनाव में भाजपा के हरिनारायण राजभर ने दूसरी बार विधायक बने. वर्ष 2002 के चुनाव में सपा प्रत्याशी के रूप में शारदानन्द अंचल सीयर विधान सभा के चौथी बार विधायक बने. सन् 2007 के चुनाव में पहली बार बसपा के केदारनाथ वर्मा निर्वाचित हुए. इसके बाद वर्ष 2012 के नये परिसीमन सीयर विधान सभा को सुरक्षित कर इसका नाम बिल्थरारोड विधान सभा कर दिया गया. इस चुनाव सपा के गोरख पासवान विजेता बने.

वर्ष 2017 के विधान सभा चुनाव के लिए सपा ने पुनः विधायक गोरख पासवान पर भरोसा जताते हुए इस चुनावी समर में प्रत्याशी बनाया है. वहीँ बसपा से पूर्व मंत्री घूरा राम, बीजेपी से धनन्जय कनौजिया व राष्ट्रीय लोकदल से धीरेन्द्र कुमार चन्द्रा सहित कुल 15 प्रत्याशी अपना भाग्य आजमायेंगे. देखना यह है कि कौन इस विधान सभा पर इस बार राज करेगा.