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फेसबुक व अन्य सोशल साइटों पर फैलाया जा रहा भ्रम, अफवाह
लवकुश सिंह
मौजूदा समय में इंटरनेट की दुनिया में पैठ बना चुका हर व्यक्ति आज किसी न किसी सोशल नेटवर्क से जुड़ा है. इसमें कोई संशय नहीं है कि सोशल मीडिया का मंच आज अभिव्यक्ति का नया और कारगर माध्यम बन चुका है. इससे जुड़े लोग बेबाकी से अपनी राय इस मंच के माध्यम से जाहिर करते हैं. हालांकि, सोशल मीडिया के प्रति बढ़ती दीवानगी जहां कई मायनों में सार्थक नजर आती है, वहीं चुनाव के समय इसके दुरुपयोग के मामले भी सभी के सामने हैं.
हम बात विधान सभा चुनाव की करें तो लगभग दलों ने इसके लिए अपना अलग आफिस खोल रखा है. शीर्ष नेताओं और पार्टियों के भी अपने-अपने पेज हैं. उस पर इन दिनों जमकर चुनाव की प्रचार सामग्री परोसी जा रही है. यहां तक कि हर विधान सभा क्षेत्र में चुनाव लड़ने वाले रहनुमा अपना फैन पेज बना रखे हैं. उस पर उद्घाटन से लेकर, अन्य सभी तरह के कार्यक्रमों की जानकारी भी परोसी जा रही है. राजीनीति के शीर्ष स्तर से लेकर गांव तक के माहौल में फेसबुक का चुनावी मैदान तो 24 घंटे सजा हुआ मिल रहा है.
एक तरह से सोशल मीडिया के मैदान से ही मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की तैयारी सभी रहनुमाओं ने कर ली है. यह सब चुनाव आयोग भी देख रहा है, किंतु दिक्कत यह है कि पहचान करना मुश्किल है कि कौन फैन है और कौन रहनुमा ? यहां तक कि मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए फलां पार्टी को पूर्ण बहुमत, तो फलां पार्टी का हुआ नुकसान, फलां हो रहे अमुक पार्टी में शामिल, तो फलां हुए पार्टी से नाराज आदि बातें भी लगातार सोशल मीडिया में भ्रम फैला रही हैं.
क्या कहते हैं जानकार
इस मामले के जानकार सिताबदियारा निवासी जेपी नारायण फाउंडेशन दिल्ली के अध्यक्ष सह अधिवक्ता शशिभूषण सिंह ने बताया कि बीते समय में सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर सांप्रदायिक हिंसा, दंगें, अफवाह फैलाने के कई मामले सामने आए हैं. इससे चेतने और सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि बीते समय में इसके भयावह दुष्परिणाम सामने आ चुके हैं. कुछ समय पहले पंजाब में फेसबुक पर 1984 सिख दंगे की भड़काऊ कहानी डालनी शुरू कर दी गई थी. उन संदेशों में सिखों पर जुल्म करने वाले और दंगे को आरोपी नेताओं की हत्या के लिए एकजुट होने का आह्वान था. ऐसे संदेश यदि इस मंच पर साझा किए जाएंगे तो समझा जा सकता है कि इसके परिणाम क्या होंगे ?
बैरिया विधान सभा के ही ग्रामीण पत्रकार एसोशिएसन के तहसील अध्यक्ष सुधीर सिंह ने कहा कि हाल के समय में ही बलिया के बैरिया विधान सभा का पड़ोसी बिहार के छपरा जिले में भी पूरा शहर एक माह तक सोशल मीडिया के दुरूपयोग के कारण ही जलता रहा था. तब वहां 15 दिनों तक सभी मोबाईल नेटवर्क के इंटरनेट तक बंद करने पड़ गए थे. उस बवाल की धमक यूपी में भी प्रवेश करने लगी थी. उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुए दंगों के दौरान भी सोशल मीडिया का दुरुपयोग किया गया था. लिहाजा सोशल मीडिया के कुछ साइटों पर होने वाले दुष्प्रचार के कारण पैदा होने वाले ऐसे हालात व भ्रम की कड़ी निगरानी होनी चाहिए.
इस संबंध में जयप्रकाशनगर क्षेत्र के निवासी व बैरिया तहसील के अधिवक्ता मनोज कुमार ने कहा कि लोगों के अभिव्यक्ति के अधिकार का पूरा समर्थन किया जाना चाहिए, मगर सुरक्षा की कीमत पर नहीं. साइबर दुनिया की अफवाह से चुनाव के दौरान काफी मतदाता हर दिन भ्रमित हो रहे हैं. वहीं सोशल मीडिया का दुरूपयोग कई स्थानों पर समाज में जहर भी घोलने का काम कर रहा हैं. लिहाजा भ्रम और अफवाह फैलाने वालों पर अंकुश लगाना अब काफी जरूरी लगने लगा है.