खुद के देश में लुप्त हो गया, बापू-जेपी का सर्वोदय

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सिताबदियारा में जेपी ने ही की थी इस परंपरा की शुरूआत

लवकुश सिंह

फरवरी महीने की 12 तारीख सर्वोदयी विचारधारा के तमाम लोगों के लिए कभी खास होती थी.  इस दिन को महात्‍मा गांधी का श्राद्ध दिवस है, किंतु जेपी के गांव सिताबदियारा में जेपी के जमाने से ही इसे सर्वोदय मेले के रूप में मनाने की परंपरा विगत तीन-चार साल पहले तक जीवित थी. अब जेपी की बनाई उस परंपरा का पूरी तरह अंत हो गया. अधिकांश सर्वोदय सदस्‍यों के निधन के बाद, जेपी के गांव सिताबदियारा में अब इस दिवस पर कोई हलचल नहीं है. जब तक पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जीवित थे, इस दिवस को संपूर्ण भारत के काने-काने से सामाजिक चिंतक, सर्वोदय सदस्‍य, जेपी के गांव सिताबदियारा में सैकड़ों की तदाद में पहुंचते थे.

एक विशाल मेले का भी आयोजन होता था. राष्‍ट्रीय विमर्श में देश के वर्तमान हालात पर घंटों चर्चाएं होती थी और उस विमर्श से निकली बातें, सारे देश के लिए एक संदेश बन जाती थी, किंतु अब बापू और जेपी का वह सर्वोदय, केवल देश ही नहीं, उनके पैतृक गांव में भी पूरी तरह विलुप्‍त हो गया. सिताबदियारा के यूपी और बिहार दोनों सीमा में लोगों के लिए मंत्र स्‍वरूप वह सर्वोदय मेला भी अब बीती बातें हो गई.

जब सर्वोदय मंत्र का हुआ बापू पर जादूई असर
गांधी और जेपी का सर्वोदय वह मंत्र है, जिसका जन्‍म 20वीं सदी में हुआ था, किंतु इस शब्‍द को जो मान्‍यता मिली उसके देन थे राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी. जब 1904 में गांधी जी ने रिस्‍कीन की ‘ अन टू दि लास्‍ट ’नामक पुस्‍तक पढ़ी तो उसका उन पर जादूई प्रभाव पड़ा. इसके बाद उन्‍होंने अपना जीवन ही इसी रूप में बदल दिया. 1908 में इस पुस्‍तक का भावानुवाद इंडियन ओपिनियन में दिया गया, और तभी सर्वोदय शब्‍द का जन्‍म हुआ. राष्‍ट्रपिता ने देखा कि दुनिया में भौतिकवादी सभ्‍यता चोटी पर है. इस सभ्‍यता का चालक वर्ग अमर्यादित और भोगवादी होने के सांथ ही दूसरों से प्रतिस्‍पर्धा रखता है. सभी अपना स्‍वार्थ देख रहे थे और दूसरों से आगे निकल जाना चाहते थे. तभी इस सर्वोदय पुस्‍तक के आने के बाद अधिकांश लोगों को नूतन अर्थशास्‍त्र के सांथ, नयी जीवन पद्धति भी मिली.

तब जेपी ने भी दान कर दिया सर्वोदय के लिए अपना जीवन
सर्वोदय मंत्र का असर लोकनायक जयप्रकाश नारायण पर भी हुआ. दुनिया के स्‍वार्थ को देख जेपी भी बेतहाशा दुखी थे. उन्‍होंने 19 अपैल 1954 को बापू से प्रभावित होकर बिहार के बोधगया में अपना संपूर्ण जीवन ही सर्वोदय के लिए दान कर दिया. तभी जयप्रकाश जी की प्रेरणा से 582 व्‍यक्तियों ने भी अपना जीवन सर्वोदय के लिए दान किया. आचार्य विनोवा ने भी अपने को सर्वोदय के लिए समर्पित किया. जेपी और आचार्य विनोवा के जीवन दान की सुगंध विदेशों में भी फैली. 28 अपैल 1958 को जेपी सर्वोदय का संदेश देश-देशांतरों में फैलाने के लिए यात्रा पर निकले और 14 देशों (इंगलैंड, फ्रांस, जर्मनी) आदि में यह संदेश पहुंचाया.

सर्वोदय के थे तीन प्रमुख तत्‍व
सर्वोदय के तहत प्रमुख तीन तत्‍व माने गए. सबके भला में अपना भला, परिश्रमयुक्‍त किसान का जीवन ही सच्‍चा जीवन, और यह भी कि यदि सभी के लिए प्रेम है तो कुछ ही खुशहाली में क्‍यों जीएं, सभी को समान जीवन जीने का अवसर मिलना चाहिए. वर्ष 1948 में गांधी जी के निधन के बाद सर्वोदय ने जो मूर्त रूप लिया, उसके देन जेपी ही थे. स्‍वयं जेपी ने ही अपने गांव सिताबदियारा में प्रतिवर्ष 12 फरवरी को महात्‍मा गांधी के श्राद्ध दिवस को सर्वोदय मेले के रूप में मनाने का निणर्य लिया था. आठ अक्‍टूबर 1979 में जेपी भी चल बसे, तब से पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखरजी के द्धारा जेपी की इस परंपरा का निर्वाह किया जाने लगा. चंद्रशेखर जी के निधन के बाद वह परंपरा कुछ वर्षों तक जरूर जीवित रही, किंतु धीरे-धीरे सभी जेपी सेनानी भी गांधी और जेपी के सर्वोदय से अनभिज्ञ होते गए, और उस परंपरा का पूरी तरह अंत हो गया.