मेला दिलों का आता है, एक बार, आ के चला जाता है

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धनुष यज्ञ मेले से लवकुश सिंह

द्वाबा की धरती पर धनुष यज्ञ मेला एक नहीं कई मायनों में खास है. इस मेले में न सिर्फ खरीदारी होती है, बल्कि कई युगल जोड़ों के वैवाहिक रिश्ते भी इस मेले में तय होते हैं. यूं कहें तो मेला फिल्म के गीत की वह पंक्ति ‘ मेला दिलों का आता है, एक बार, आ के चला जाता है.’ धनुष यज्ञ मेले पर काफी सटीक बैठती है. बीते बुधवार को द्वाबा के पत्रकारों की एक टीम ने काफी देर तक घूमकर इस मेले को हर एंगल से देखने का प्रयास किया. सबसे पहले इस टीम ने परम पूज्यनीय संत सुदिष्ट बाबा की समाधी पर अपना माथा टेका और यहीं से सभी निकल पड़े मेले की रौनक को कैद करने. मौत का कुंआ, चरखी, झूला आदि तो यहां विशेष आकर्षण का केंद्र थे ही. सबसे ज्यादा भीड़ सौंदर्य प्रसाधन की दुकानों पर थी. हरेक माल पांच रुपये, तो कहीं 10 और 25 रुपये की राग कई जगहों पर दुकानदार अलापे जा रहे थे. लकड़ी की दुकानों पर उतनी भीड़ नहीं दिखी, जितनी अपेक्षा थी. मिठाई की लगभग दुकानों पर महिला-पुरुष जलेबी और चाट आदि खाने में मग्न थे. इससे अलग सुदिष्ट बाबा समाधी स्थल से कुछ दूरी पर शादी-विवाह के लिए रिश्ते भी तय किए जा रहे थे. वहां अलग-अलग टोली में कई स्थानों पर वैवाहिक उद्देश्य से देखा-सुनी का कार्यक्रम भी चल रहा था.

सुदिष्ट बाबा मेले में कराते थे दहेज रहित विवाह

इस मेले में मिले स्थानीय कई लोगों ने बताया कि संत सुदिष्ट बाबा संत होने के साथ ही समाजसेवी भी थे. बाबा ने 108 कुएं और दर्जनों तालाबों का निर्माण कराने के साथ ही प्रतिवर्ष धनुष यज्ञ मेले का आयोजन कर दहेज रहित शादियां भी करवाते थे. पत्रकार विश्वनाथ तिवारी ने सुदिष्ट बाबा से जुड़े एक प्रसंग को भी बताया. कहा कि कि अंग्रेज जिलाधिकारी राबर्ट्स सुदिष्ट बाबा के आश्रम पर अचानक पहुंचकर उनकी परीक्षा लेने के लिए गाय का ताजा दूध मांगा. बाबा ने अपने शिष्य से कहा कि जाओ कमंडल में दूध रखा है,  ले आओ. इस पर शिष्य काफी पेसोपेश में पड़ गया, क्योंकि कमंडल में दूध नहीं था. सुदिष्ट बाबा ने अपने शिष्य की मनोदशा को भांप कर फिर एक बार दबाव बनाया और कहा कि जाओ कमंडल से दूध लाओ. गुरु की बात मानकर शिष्य जब कमंडल लाने गया तो देखा कि कमंडल में दूध लबालब भरा हुआ था. स्थानीय पत्रकार सुधीर सिंह ने कहा कि भले ही अब धनुष यज्ञ मेले में रामलीला और कन्याओं का विवाह नहीं होता, लेकिन बाबा के प्रति श्रद्धा आज भी जस की तस है.

जितनी जुटती भीड़, उतनी नहीं होती बिक्री

मेले के कई दकानदारों से जब पत्रकारों ने उनकी बिक्री के बाबत पूछा तो कपड़ा दुकानदार उमेश साह ने बताया कि जितनी संख्या में भीड़ हो रही है, उस हिसाब से बिक्री नहीं हो पा रही है. फर्नीचर के दुकानदार रमेश शर्मा ने बताया कि पहले लोग मेले में समानों की खरीदारी के लिए आते थे, अब उनका इरादा ज्यादा घूमने का होता है. बताया कि अब लगभग गांवों में छोटे-छोटे बाजार हो चले हैं, जहां वर्ष भर हर सामान उपलब्ध है. इस वजह से भी लोग मेले से समानों की खरीदारी पहले जैसा नहीं कर रहे हैं.

नोटबंदी का नहीं है कोई खास असर

मेले के दुकानदारों से यह सवाल कि नोटबंदी से मेले पर क्या असर है? इस पर दर्जनों दुकानदारों ने कहा कि नोट बंदी से कोई असर नहीं है. जिसे जो खरीदना है, वह हर हाल में खरीद रहा है. मेले की चरखी, मौत का कुंआ, झूला आदि पर लगातार भीइ जमा रहती है.

सुरक्षा का है पुख्ता इंतजाम

धनुष यज्ञ मेले में दुकानदार हो मेलार्थी सभी सुरक्षा के इंतजाम को लेकर काफी खुश हैं. प्रत्यक्ष रूप से यह दिखाई भी दे रहा था कि पुलिसकर्मी जगह-जगह अपनी ड्यूटी बजा रहे थे. जहां पर महिलाओं के सौंदर्य प्रसाधन की दुकाने थी, वहां पुलिस की विशेष नजर थी.