चीथड़ों में गुजर बसर कर रहे हैं  भिखारी ठाकुर के परिजन

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भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर के परिजनों की एक पड़ताल

छपरा (बिहार) से लवकुश सिंह

रविवार को लोक संस्कृति के वाहक कवि व भोजपुरी के शेक्सपियर माने जाने जाने वाले भिखारी ठाकुर का  जयंती मनाई गई, लेकिन क्या कोई यकीन कर सकता है कि भक्तिकालीन कवियों व रीति कालीन कवियों के संधि स्थल पर कैथी लिपि में कलम चलाकर फिर रामलीला,  कृष्णलीला,  विदेशिया,  बेटी-बेचवा, गबरघिचोरहा, गीति नाट्य को अभिनीत करने वाले लोक कवि भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर का परिवार चीथड़ों में जी रहा हो. देश ही नहीं, विदेशों में भोजपुरी के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करने वाले मल्लिक जी के परिवार गरीबी का दंश झेल रहा है.

यह सच है कि उनके जयंती व पुण्यतिथि पर कुछ गणमान्य पहुंचते हैं, कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं,  लेकिन यह सब मात्र श्रद्धांजलि की औपचारिकता तक सिमट कर रह जाते हैं. न तो ऐसे किसी आयोजन में भिखारी ठाकुर के गांववासियों का दर्द सुना जाता है, न ही उनके दर्द की दवा की प्रबंध की बात होती है. कुतुबपुर दियारा स्थित मल्लिक जी का खपरैल व छप्पर निर्मित जीर्ण-शीर्ण घर आज भी अपने जीर्णोद्धार की बाट जोह रहा है. यही से भिखारी ठाकुर ने काव्य सरिता प्रवाहित की थी और उनकी प्रसिद्धि की गूंज आज भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर सुनाई पड़ रही है.

नौकरी के लिए भटक रहा प्रपौत्र

भिखारी ठाकुर के प्रपौत्र सुशील कुमार आज एक अदद चतुर्थ श्रेणी की नौकरी के लिए मारा-मारा फिर रहा है. दर्द भरी जुबान से सुशील बतातें हैं कि अगर फुआ और फुफा नहीं रहते तो शायद मैं एमए तक पढ़ाई नहीं कर पाता. रोटी की लड़ाई में मेरी पढ़ाई नेपथ्य में चली गई रहती. समहरणालय में चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी की नौकरी के लिए वह आवेदन किए हैं. पैनल सूची में नाम भी है, लेकिन एक साल बीत गए, भगवान जाने नौकरी कब मिलेगी. हाल यह है कि विभिन्न कार्यक्रमों में उन्हें एवं उनके परिजन को मंच तक नहीं बुलाया जाता है.

जिस दीपक की लौ से समाज में व्याप्त कुरीतियों और सामयिक संमस्याओं को उजागर करने का महती प्रयास भिखारी ठाकुर ने किया, उनकी लौ में आज कई लोग रोटियां सेंक रहे हैं, लेकिन दीपक तले अंधेरे की कहावत चरितार्थ हो रही है. दबी जुबान से दिल की बात बाहर आती है कि भिखारी ठाकुर के नाम पर कई लोग वृद्धा पेंशन एवं सुख सुविधा का लाभ उठा रहे हैं. परिवार को हर एक जरूरत की दरकार है. एक ओर जहां सुशील जीवकोपार्जन के लिए दर-दर भटक रहे हैं वहीं, उनकी पुत्रवधू व सुशील की मां गरीबी का दंश झेल रही है.

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भिखारी ठाकुर के इकलौते पुत्र शीलानाथ ठाकुर थे. उन्हें भिखारी ठाकुर के नाट्य मंडली व उनके कार्यक्रमों से कोई रूचि नहीं थी. उनके तीन पुत्र राजेन्द्र ठाकुर, हीरालाल ठाकुर व दीनदयाल ठाकुर भिखारी की कला को जिन्दा रखे. नाटक मंडली बनाकर जगह-जगह कार्यक्रम करने लगे, किंतु इसी बीच उनके बाबू जी गुजर गए, फिर पेट की आग तले वह संस्कार दब गई. अब तो राजेन्द्र ठाकुर भी नहीं रहे. फिलवक्त भिखारी ठाकुर के परिवार में उनके प्रपौत्र सुशील ठाकुर, राकेश ठाकुर, मुन्ना ठाकुर एवं इनकी पत्नी रहती हैं. जीर्ण-शीर्ण हालात में किसी तरह सत्ता व सरकार को कोसते जिंदगी जिये जा रहे हैं उनके परिजन.