शेर-ए-बलिया चित्तू पांडेय को भावभीनी श्रद्धांजलि

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बलिया। शेर-ए-बलिया चित्तू  पांडेय को 70वीं पुण्यतिथि पर मंगलवार को जिला मुख्यालय स्थित चौराहे पर उनकी प्रतिमा पर लोगों ने माल्यार्पण कर अपनी श्रद्धांजलि दी.

वक्ताओं ने कहा कि राष्ट्र आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है. जरूरत है बागी बलिया के क्रांतिकारी युवा चित्तू  पांडेय के ऐतिहासिक कृतित्व से सीख लेकर समाज का नव निर्माण करें. चित्तू पांडेय की प्रतिमा पर आयोजित सर्वदलीय श्रद्धांजलि सभा में कांग्रेस के रामधनी सिंह, रमाशंकर तिवारी, मुन्ना उपाध्याय, विनय कुमार पांडेय, उषा सिंह, शशि कांत चतुर्वेदी, प्रतुल ओझा, रुपेश चौबे, मिथलेश पांडेय, सुधीर सिंह बंटू, संजय शुक्ल, करुणानिधि तिवारी, जावेद कमाल खान, आशुतोष ओझा, परशुराम यादव, शीला मिश्रा, विकास कुमार विकी, अजय यादव, पवन तिवारी, राजू ओझा, दीपक यादव, अनिल पांडेय, धर्मात्मा नंद पांडेय, अभिषेक यादव, अवनीश पांडेय, संजय यादव, दीपक राय, राकेश यादव, शिव कुमार यादव, शंकर तिवारी आदि ने विचार व्यक्त किए. अध्यक्षता गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष निर्मल कुमार उपाध्याय तथा संचालन सागर सिंह राहुल ने किया. जैनेंद्र पांडेय उर्फ मिंटू ने आभार व्यक्त किया.

chittu_pandey_1चित्तू पांडेय (1865-1946) को प्यार से शेर-ए-बलिया यानि बलिया का शेर कहते हैं. बलिया के रट्टूचक गांव में 10 मई 1865 को जन्मे चित्तू पांडेय ने 1942 के ब्रिटिश विरोधी आंदोलन में स्थानीय लोगों की फौज बना कर अंग्रेजों को खदेड़ दिया था. 19 अगस्त, 1942 को वहां स्थानीय सरकार बनी, तब कुछ दिनों तक बलिया में चित्तू पांडेय का शासन भी चला, लेकिन बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने गदर को दबाने के क्रम में आंदोलनकारियों को उखाड़ फेंका. चित्तू पांडेय की मृत्यु को 1946 में हुई थी.