‘लक’ सुधारने को नए ‘लुक’ में ऐतिहासिक धनुष यज्ञ मेला आज से

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बैरिया (बलिया) से वीरेंद्र नाथ मिश्र 

virendra_nath_mishraपूर्वी उत्तर प्रदेश एवं पश्चिमी बिहार के ग्रामीण अंचलों में चर्चित, सुविख्यात संत सुदिष्ट बाबा के आश्रम पर प्रत्येक वर्ष लगनेवाला धनुष यज्ञ मेला रविवार से प्रारंभ हो रहा है. लगभग तीन सप्ताह तक चलने वाले इस मेले के लिए सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. रानीगंज बाजार से पूरब कोटवा गांव के किनारे संत सुदिष्ट बाबा के आश्रम सुदिष्टपुरी मे प्रत्येक वर्ष अगहन माह के शुक्ल पंचमी तिथि से धनुष यज्ञ मेला प्रारंभ होता है.

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आजकल इस मेले का रूप आधुनिकतम होता जा रहा है. मेले में हर अलग-अलग तरह के वस्तुओं के लिए अलग-अलग कतारों में दुकानें लगती हैं. बीच में चौक स्थापित किया जाता है, जहां धर्म ध्वज लगाकर प्रत्येक वर्ष पूजन के साथ मेले का शुभारंभ होता है. ग्राम पंचायत कोटवा द्वारा लगाए जाने वाले इस मेले को खास नक्शे के अनुसार लगाया जाता है, जिससे मेला क्षेत्र सड़कों गलियों, चौराहों से युक्त सुंदर ढंग से बसे नगर का स्वरूप ले लेता है. पास-पड़ोस जनपदों के लोग भी इस मेले में आते हैं.

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संत सुदिष्ट बाबा के दर्शन, पूजन, अर्चन के अलावा खरीद-फरोख्त भी कर करते हैं. बुजुर्गों में बिखरी सुदिष्ट बाबा के मेले संदर्भ में कथाओं को समेटने पर यह तथ्य सामने आता है कि मेले का जो स्वरूप आजकल है, प्रारंभिक दिनों में ऐसा नहीं था. जबकि आज भी दूर दूर से संत-महात्मा इस मेले में आते हैं और सुदिष्ट बाबा की समाधि के सामने नतमस्तक होकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. एक-दो दिन ठहर कर अपने-अपने स्थान को वापस लौट जाते हैं. संतों का यह जमघट ही मेले का प्रारंभ रहा है.

बताते हैं संत सुदिष्ट बाबा रामायण व महाभारत की कथाओं में विशेष रूचि लेते थे. यह 1830 से 1880 ई बीच की बात है. यह मेला भी उन रुचियों का ही प्रतिफल है. प्रत्येक वर्ष अगहन मास कृष्ण पक्ष एकादशी को बाबा 18 पुराणों की कथा आरंभ कराते थे. आश्रम के समीप के शिवालय के इर्द-गिर्द 18 बेदियां बनाई जाती थी, जिस पर पूर्ण निष्ठा के साथ 18 विप्र कथा बांचने के लिए बैठते थे. इसी के साथ काशी से रामलीला मंडली भी बुलाई जाती थी. रात में रामलीला होती थी. अगहन शुक्ल पंचमी को धनुष यज्ञ का दृश्य प्रस्तुत किया जाता था. इस अवसर पर सुदिष्ट बाबा देश के कोने-कोने से संतों को निमंत्रित करते थे. इस अवसर पर रामलीला में राम एवं सीता की भूमिका निभाने वाले पात्र अविवाहित लड़के, लड़कियां होते थे.

बाबाजी के आश्रम पर ही धनुष भंग के बाद संपूर्ण वैदिक रीति रिवाज के साथ उनका विवाह करा दिया जाता था. इस विवाह के अवसर पर क्षेत्र के सभी प्रतिष्ठित लोग विशेष रूप से हाथी घोड़े पर सवार होकर बाबा के निमंत्रण पर आश्रम आते थे. जिस प्रकार अयोध्या से बारात चल कर जनकपुरी पहुंची थी, उसी प्रकार का दृश्य उपस्थित किया जाता था. समय चक्र के साथ ही मेले का मूल रूप बदलता गया.

18 पुराणों के स्थान पर पांच बेदियों पर बैठकर पंडितों द्वारा श्रीमद्भागवत कथा सुनाई जाती है. पंचमी के दिन यज्ञ हवन करके तथा किसी विशिष्ट संत द्वारा मेले के केंद्र वाले चौराहे पर धर्म ध्वज  स्थापित करा कर मेले का शुभारंभ कर दिया जाता है. मेले में नाटक, सर्कस, चिड़ियाघर, खेल, तमाशे, चरखी, झूला आदि के अलावा लकड़ी, लोहा, कपड़ा, खिलौना, बर्तन, सौंदर्य प्रसाधन आदि की दूर-दूर से दुकानें आती है. हजारों की संख्या में भीड़ इकट्ठा हो जाती है. सुरक्षा के लिए मेले में थाना मीना बाजार स्थापित किया जाता है. सुदिष्ट बाबा ने समाज के हित में बड़ा योगदान किया है. दर्जनों स्थानों पर कुंवा, मंदिर, तालाब एवं रास्ता का निर्माण बाबाजी द्वारा करवाया गया, जो उनके कृतियों का अक्षय स्मारक है.

रानीगंज बाजार का भागड नाला पुल आज आज भी बाबा के लोक मंगल की कामना का उदाहरण है. पूर्व प्रधान कोटवा गौरी शंकर प्रसाद एवं प्रधान पुत्र संजू गुप्ता, व्यापारी नेता रोशन गुप्त मेला को सजाने संवारने वाले राजन सिंह, मिथिलेश सिंह, विवेक पाल, हृदयानन्द सिह आदि ने मेले  में आए व्यापारियों से मिलकर उनका हाल-चाल लिया और प्रकाश पेयजल और स्वच्छता का जायजा लिया.

आकर्षण का केन्द्र होता है मेले मे राजनीतिक मंच

धनुष यज्ञ मेले में पहले दिन लगनेवाला राजनीतिक मंच विशेष आकर्षण का केंद्र होता है. हरेक राजनीतिक दल यहां अपना अपना कैंप लगाते हैं और उसी कैंप के माध्यम से अपने दल के विशेषताओं को लोगों के समक्ष रखते हैं. साथ ही साथ मेले में आए हुए भूले भटके लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने में सहायता करते हैं. चुनावी वर्ष में मेले में लगने वाला राजनीतिक कैंप विशेष हो जाता है. जिस पार्टी का जनाधार कमजोर होता है वह कैंप लगाने से कतराते हैं. चुनावी वर्ष में मेले में लगने वाला राजनीतिक कैंप विशेष हो जाता है.

आज ही से जुड़ने लगे श्रद्धालु

मेले में शनिवार से ही मेला प्रेमी जुटने लगे हैं, जिनके ठहरने की व्यवस्था इंटर कॉलेज में की गई है. परंपरा के अनुसार जुटने वाली महिलाएं रात भर भक्ति गीत गाती हैं. भोर में स्नान कर बाबा की समाधि पर मत्था टेकने के बाद बाबा द्वारा बनवाए गए पोखरे के पास बैठकर गुडही जलेबी और सब्जी खाने की परंपरा आज भी जीवंत है.